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वा॒चस्पतिं॑ वि॒श्वक॑र्माणमू॒तये॑ मनो॒जुवं॒ वाजे॑ऽअ॒द्या हु॑वेम। स नो॒ विश्वा॑नि॒ हव॑नानि जोषद् वि॒श्वश॑म्भू॒रव॑से सा॒धुक॑र्मा ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वा॒चः। पति॑म्। वि॒श्वक॑र्माण॒मिति॑ वि॒श्वऽक॑र्माणम्। ऊ॒तये॑। म॒नो॒जुव॒मिति॑ मनः॒ऽजुव॑म्। वाजे॑। अ॒द्य। हु॒वे॒म॒। सः। नः॒। विश्वा॑नि। हव॑नानि। जो॒ष॒त्। वि॒श्वश॑म्भू॒रिति॑ वि॒श्वऽश॑म्भूः। अव॑से। सा॒धुक॒र्मेति॑ सा॒धुऽक॑र्मा ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसा पुरुष राज्य के अधिकार पर नियुक्त करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! हम लोग (ऊतये) रक्षा आदि के लिये जिस (वाचस्पतिम्) वेदवाणी के रक्षक (मनोजुवम्) मन के समान वेगवान् (विश्वकर्माणम्) सब कर्मों में कुशल महात्मा पुरुष को (वाजे) संग्राम आदि कर्म में (हुवेम) बुलावें (सः) वह (विश्वशम्भूः) सब के लिये सुखप्रापक (साधुकर्मा) धर्मयुक्त कर्मों का सेवन करनेहारा विद्वान् (नः) हमारी (अवसे) रक्षा आदि के लिये (अद्य) आज (विश्वानि) सब (हवनानि) ग्रहण करने योग्य कर्मों को (जोषत्) सेवन करे ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जिसने ब्रह्मचर्य नियम के साथ सब विद्या पढ़ी हों, जो धर्मात्मा आलस्य और पक्षपात को छोड़ के उत्तम कर्मों का सेवन करता तथा शरीर और आत्मा के बल से पूरा हो, उसको सब प्रजा की रक्षा करने में अधिपति राजा बनावें ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किंभूतो जनो राज्याधिकारे नियोज्य इत्याह ॥

अन्वय:

(वाचस्पतिम्) वाचो वेदवाण्याः पालकम् (विश्वकर्माणम्) अखिलेषु कर्मसु कुशलम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (मनोजुवम्) मनोवद्वेगवन्तम् (वाजे) संग्रामादौ कर्मणि (अद्य) अस्मिन् दिने। अत्र संहितायाम् [अष्टा०६.३.११४] इति दीर्घः (हुवेम) स्वीकुर्याम (सः) (नः) अस्माकम् (विश्वानि) सर्वाणि (हवनानि) ग्राह्याणि कर्माणि (जोषत्) जुषताम्, अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (विश्वशम्भूः) विश्वस्मै शं सुखं भावुकः (अवसे) रक्षणाद्याय (साधुकर्मा) धर्म्यकर्मानुष्ठाता ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयमूतये यं वाचस्पतिं मनोजुवं विश्वकर्माणं महात्मानं वाजे हुवेम, स विश्वशम्भूः साधुकर्मा नोवसेऽद्य विश्वानि हवनानि जोषज्जुषताम् ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्येन ब्रह्मचर्येणाखिला विद्याधीता यो धार्मिकोऽनलसो भूत्वा पक्षपातं विहायोत्तमानि कर्माणि सेवते, पूर्णशरीरात्मबलः स सर्वस्याः प्रजाया रक्षणे सर्वाधिपती राजा विधेयः ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याने ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या प्राप्त केलेली आहे व जो धर्मात्मा असून आळस, पक्षपात सोडून उत्तम कर्म करतो, तसेच ज्याचे शरीर व आत्मा बलवान असतो आणि प्रजेचे रक्षण करण्यास जो पदार्थ असतो अशा व्यक्तीला माणसांनी राजा बनवावे.